अंतरराष्ट्रीय विज्ञान सम्मेलन में परंपरागत ज्ञान एवं वनौषधि विकास फाउंडेशन (परंपरागत वैद्य संघ) का चयन।

अंतरराष्ट्रीय विज्ञान सम्मेलन में परंपरागत ज्ञान एवं वनौषधि विकास फाउंडेशन (परंपरागत वैद्य संघ) का चयन
बिलासपुर। अंतर्राष्ट्रीय विज्ञान सम्मेलन में प्रथम बार छत्तीसगढ़ राज्य की आदिवासी स्थानीय स्वास्थ्य परंपरागत ज्ञान आधारित चिकित्सा पद्धति का प्रदर्शन वैज्ञानिकों एवं अनुसंधानकर्ताओं के सामने परंपरागत ज्ञान एवं वनौषधि विकास फाउंडेशन छत्तीसगढ़ द्वारा किया जा रहा है। यह आयोजन भारत सरकार के साइंस एंड टेक्नोलॉजी मंत्रालय एवं विभा वाणी द्वारा आयोजित किया जा रहा है विज्ञान भारती जमीनी स्तर के विकासात्मक संगठनों, शैक्षिक और अनुसंधान संस्थानों, सामाजिक वैज्ञानिकों और कार्यकर्ताओं और सामाजिक उद्यमियों का एक संघ है।यह विज्ञान भारती की एक पहल है। भारत को बदलने के लिए सामाजिक कार्यों में वैज्ञानिक हस्तक्षेप के माध्यम से राष्ट्र निर्माण के लिए विज्ञान उन्मुख सामाजिक संगठनों और संस्थानों के सबसे बड़े जन आंदोलन के रूप में विकसित करने की परिकल्पना की गई है।यह सुनिश्चित करने के लिए कि विज्ञान और प्रौद्योगिकी का फल जनता तक पहुंचे, विज्ञान और प्रौद्योगिकी मंत्रालय द्वारा आयोजित एनपीएल, नई दिल्ली में आईआईएसएफ-2016 के साथ पहले ‘एनजीओ कॉन्क्लेव’ का आयोजन किया गया। कॉन्क्लेव के परिणाम के रूप में, यह परिकल्पना की गई थी कि विज्ञान भारती (विज्ञान भारती, 25 से अधिक वर्षों के ट्रैक रिकॉर्ड के साथ सबसे बड़ा विज्ञान आंदोलन) की विकास पहल के रूप में विज्ञान उन्मुख सामाजिक संगठनों और संस्थानों का एक राष्ट्रीय नेटवर्क बनाने की आवश्यकता है। इससे विभववाणी के बैनर तले विज्ञान और सामाजिक विकास के क्षेत्र में काम करने वाले स्वैच्छिक संगठनों के एक नेटवर्क का निर्माण हुआ। परंपरागत ज्ञान एवं वनौषधि विकास फाउंडेशन के संचालक निर्मल अवस्थी से प्राप्त जानकारी अनुसार उन्होंने बताया कि छत्तीसगढ़ की वनस्पति जैवविविधता और यहां का परंपरागत ज्ञान को वैज्ञानिक प्रमाणिक्ता हेतु हमने आवेदन किया और यहां की पारंपरिक चिकित्सा पद्धति पर अनुसंधान प्रमाणीकरण के लिए बड़ी चुनौती थी इस कारण हमने विभा वाणी से आग्रह किया और इस आयोजन में शामिल किया गया है। अवस्थी ने बताया कि आज हड्डियों व कैंसर एवं असाध रोगों से संबंधी बहुत से औषधीय पौधे विलुप्त हो रहे हैं हम चाहते हैं कि छत्तीसगढ़ की पहचान पारंपरिक चिकित्सा पद्धति के संवाहक पारंपरिक वैद्यों से भी हो और यह तभी संभव है जब पारंपरिक वैद्यों के ज्ञान का वैज्ञानिक प्रमाणिक्ता सिद्ध हो इसके लिए यह एक सार्थक पहल होगी। इसके लिए छत्तीसगढ़ राज्य से तीन पारंपरिक वैद्यों की सहभागिता सुनिश्चित किया गया है।इस आयोजन में लगभग 4 हजार संस्थानों के प्रतिनिधिमंडल भाग ले रहे हैं। छत्तीसगढ़ राज्य से दुर्लभ 153 वनस्पतियों का प्रदर्शन वैज्ञानिकों के समक्ष किया जाएगा जिसमें नागरकेना,सावर भंज, कोरकोट, कारीभूलन, मोहलाइन, तिनपतिया,क्योंटिन,चम्पा,गठुअन बज गांठ,पियुरी,गोडरू जड़, कोरकोट,कारीभूलन,रावनबिट्टा, बनचेंज यौवन मूसलचंद बड़े मसाला,इनबगई,सुनसुइआ, डोकर बेल यह औषधि पौधों का उपयोग छत्तीसगढ़ राज्य में आदिमजाति द्वारा हजारों वर्षों से विभिन्न असाध्य रोगियों व पशुओं की चिकित्सा में किया जा रहा है परन्तु वैज्ञानिक प्रमाणिक्ता के बिना इन दिव्य औषधि पादपों की पूंछ परख न होने से विलुप्त होती जा रही है। अवस्थी ने कहा कि विकास की कड़ी में हमारा पारंपरिक ज्ञान का बड़ा महत्व है और यह मानव सभ्यता की रीढ़ की हड्डी है हम इसके वगैर विकास नहीं कर सकते आज वनस्पति जैवविविधता का संरक्षण संवर्धन आवश्यक है।

