छत्तीसगढ़समाजिकसंस्कृति

महादान के लोक पर्व छेरछेरा पुन्नी पर,,अपने टोली के साथ पार्षद सूरज मरकाम निकले गाते बजाते छेरछेरा मांगने।

बिलासपुर छत्तीसगढ़ के प्रसिद्ध लोक पर्व छेरछेरा पुन्नी पर्व परम्परा के अनुरूप आज सवेरे से ही छोटे बच्चों व युवाओं ने अपने छत्तीसगढ़ की परंपरा संस्कृति को बरकरार रखनें नगर व ग्रामीण क्षेत्रों के घरों मुहल्ले में गाते बजाते हुए छेरछेरा पुन्नी का दान मांगा।

छत्तीसगढ़ धान का कटोरा है।यहां लोक रंगों की अनेक विधाए है जो यहाँ की लोक-संस्कृति के साथ लोकजीवन का सहज चित्रण करते है।छत्तीसगढ़ के विभिन्न अंचलो मे विभिन्न त्योंहार मनाये जाते है।ऐसे ही छेरछेरा छत्तीसगढ़ का पारम्परिक त्योहार है,यह पर्व पूष मास की पूर्णिमा को मनाया जाता है।कृषि प्रधान संस्कृति और ग्रामीण जनजीवन मे सम्पन्नता और समानता में समन्वय की भावना को प्रकट करता है।छत्तीसगढ़ में यह पर्व नई फसल के खलिहान से घर आ जाने के बाद मनाया जाता है। इस दौरान लोग घर-घर जाकर अन्न का दान माँगते हैं। वहीं गाँव के युवक घर-घर जाकर डंडा नृत्य करते हैं।साथ ही भजन कीर्तन के माध्यम से छेरछेरा मांगते है।

छेरछेरा पर्व पर वार्ड नं 12 के पार्षद सूरज मरकाम ने सभी लोगों को छेरछेरा पर्व की बधाई शुभकामनाएं देते हुए कहा- महादान का यह उत्सव छेरछेरा पुन्नी पर हमारे नगर व गांव के बच्चों,युवाओं, किसानों,मजदूरों और महिलाओं की टीम घर-घर जाकर छेरछेरा पुन्नी का दान मांगते हैं। इस पर्व में समानता का भाव प्रमुखता से उभर कर सामने आता है। धनवान और गरीब एक दूसरे के घर दान मांगने जाते हैं।और दान में एकत्र धान,राशि और सामग्री गांवों में रचनात्मक कार्यों में लगाई जाती है।अपने इस परंपरागत पर्व को खुशहाली व उत्साह के साथ सभी को मनाना चाहिए।

प्राचीन मान्यता है कि,,,, राजा बलि की गणना दानवीरों में होती है। उनसे भगवान विष्णु ने वामन रूप धारणकर तीन पग धरती दान के रूप में मांगी थी। वामन ने दान में समूचा ब्रह्मांड तीन पग में नाप लिया था। इसे द्वापर युग में भगवान श्रीकृष्ण व सुदामा के प्रसंग के रूप में भी देखा जाता है।और इसे दान के पर्व के रूप मे मनाया जाता है।यह दानपर्व के रूप मे कृषि कार्य संपन्न होने के बाद किसान माता अन्नपूर्णा के प्रति कृतज्ञता व्यक्त करने मनाते हैं।वहीं पौराणिक मान्यता के अनुसार कहतें हैं की भगवान शंकर ने माता अन्नपूर्णा से भिक्षा मांगी थी। इसलिए लोग धान के साथ साग-भाजी, फल का दान भी करते हैं। मान्यता है कि रतनपुर के राजा छह माह के प्रवास के बाद रतनपुर लौटे थे। उनकी आवभगत में प्रजा को दान दिया गया था।छेरछेरा के समय धान मिसाई का काम आखरी चरण में होता है। इस दिन छोटे-बड़े सभी लोग घरों, खलिहानों में जाकर धान और धन इकट्ठा करते हैं। इस प्रकार एकत्रित धान और धन को गांव के विकास व कार्यक्रमों में लगाने की परम्परा रही है। छेरछेरा का दूसरा पहलू आध्यात्मिक भी है, यह बड़े-छोटे के भेदभाव और अहंकार की भावना को समाप्त करता है।इस तरह पूरे छत्तीसगढ़ में ग्रामीण क्षेत्रों के साथ ही शहरों में भी उत्सव के रूप में इसे मनाया जाता है।

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